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अन्तर्दाह / पृष्ठ 25 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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क्यों प्राण - पखेरू अब तक
उर - पिंजर में सोया है ?
यह निकल नहीं क्यों जाता
किस माया में खोया है ? ।।१२१।।

इस वितत विश्व - दर्पण में
देखा वह रूप सलोना
देखा जगती में करते
उसका वह जादू- टोना।।१२२।।

देखा था अरुण प्रभा में
उसके चरणों की लाली
देखा था निविड़ निशा में
कुंचित केशों की काली ।।१२३।।।

देखा था उसको नभ निभ
हिम-बिन्दु प्रेम बरसाते
पाया था कुमुद विपिन में
उसको चंद्रिका लुटाते ।।१२४।।

उसकी कोमल करुणा को
देखा चहुँदिशि बिखरी - सी
निष्कलुष हृदय की ममता
शशि किरणों में निखरी - सी ।।१२५।।