भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्तर्दाह / पृष्ठ 28 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:12, 13 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध' |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


क्या शमी लता - सी उस में
भीषण दावाग्नि छिपी थी ?
बाहर शीतल हरियाली
मृग-तृष्णा सदृश दिखी थी ।।१३६।।

वह प्रीती नहीं तो क्या थी?
धोखा, प्रपंच , माया थी ?
वाड़व ज्वाला भीतर थी
बाहर जल की छाया थी ? ।।१३७।।

है सच्चा प्रेम निशा का
हिमकर का औ' तारों का
चातक, चकोर का पावन
स्वाती का, अंगारों का ।।१३८।।

ओ मलयानिल! मत छूना
मेरे इस जलते तन को
शायद तुम भी जल जाओ
झट छोड़ भगो उपवन को ।।१३९।।

पर, कौन रोक सकता है
मधु पर मरने वालों को ?
दीपक की तिग्भप्रभा में
देखा जलने वालों को ।।१४०।।