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अन्तर्दाह / पृष्ठ 40 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'
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संसार - वृक्ष - डाली में
वह पुण्य - पुष्प लटका हो
जिसकी प्रमोद - माला में
यह तन-मन-स्वन भटका हो ।।१९१।।
प्रिय पुण्य - पूत पंकज से
आनन्द - राग झरता हो
मधुपान विश्व कर नाचे
कोई न कभी मरता हो ।।१९२।।
करुणा के शीतल घन में
मुस्काती ममता मेरी
बिछुड़ों को पुनः मिलाये
घर-घर में देकर फेरी ।।१९३।।
दुख-मग्न, भग्न हृदयों के
तारों की स्वर लहरी हो
अग-जग के सदनांगन में
मेरी ममता छहरी हो ।।१९४।।
जीवन - असीम अम्बर में
वह मधुरालोक खिला हो
सुख-दुख के दिव्य मिलन से
मानव का शोक जला हो ।।१९५।।