भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब मैं कभी नहीं आ पाऊँगा / संजय शाण्डिल्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:43, 17 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय शाण्डिल्य |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुमने कहा
आना
मैंने भी कहा
आऊँगा
तुमने मन दाबकर कहा था
आना
मैंने भी मन दाबकर ही कहा था
आऊँगा
तुम जब कह रहे थे
आना
तुम जानते थे
मैं नहीं आऊँगा
मैं भी जब कह रहा था
आऊँगा
मैं जानता था
तुम्हारे पास
अब मैं कभी नहीं आ पाऊँगा ।