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काल-चक्र / महेन्द्र भटनागर
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निर्मम है
काल-चक्र
अतिशय निर्मम !
जिसके नीचे
जड़-जंगम
क्रमशः पिसता और बदलता
हर क्षण, हर पल !
थर-थर कँपता भू-मंडल !
अदृश्य
निःशब्द किये
अविरत घूम रहा
यह काल-चक्र
निर्विघ्न ... निर्विकार !
इसके सम्मुख
स्थिरता का कोई
अस्तित्व नहीं,
इसकी गति से
सतत नियन्त्रित
जीवन और मरण,
धरती और गगन !