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अधूरी रचना / संजय शाण्डिल्य
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गर्भस्थ शिशु
सूखता हुआ
अपनी ही देह में
लौटता हुआ
अपने प्रारम्भ की ओर
बिलाता हुआ
बिलबिलाता हुआ
अपनी आत्मा के अनन्त में ...!