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निरुद्विग्न / महेन्द्र भटनागर
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मृत्यु से डरते रहेंगे
तो
हो जायगा
- जीना निरर्थक !
भार बोझिल
शुष्क नीरस
निर्विषय मानस।
अतः
सार्थक तभी
जीवन,
मरण-डर मुक्त हो
- हर क्षण।
अशुभ है
नाम लेना
मृत्यु-भय का,
या प्रलय का
- इसी कारण।