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सावित्री / पॉल वेरलेन / मदन पाल सिंह
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सावित्री ने ली सौगन्ध अपने स्वामी के प्राण रक्षा के हित
कि वह खड़ी रहेगी तीन दिन-रात लगातार
न झपकेगी पलक, न खिसकेंगे पद और बदन-एक अविचल मूठ की तरह !
जैसा व्यास ने कहा था।
सूर्य तेरी तेज़ तपन और मध्यरात्रि में चोटियों पर छाई चन्द्र की शान्तिदायक चान्दनी
हत कर सके नहीं उस व्रत और निर्णय का,
उस पतिव्रता के शरीर और ध्यान को कोई भी शिथिल कर सका नहीं।
चाहे विस्मृति हमें घेरे - वह नीरस घाती
या कुटिल ईर्ष्या, चाह काबू करना चाहे
पर हम रहें शान्त चित, सावित्री की तरह
आत्मा में उच्च लक्ष्य लिए -- अविचल।
मूल फ़्रांसीसी से अनुवाद : मदन पाल सिंह