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पतझाड़ तनिक मुस्काओ तो / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

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 पतझाड़ तनिक मुस्काओ तो!
कवि पास चला आया है तुम,
अपने काँटे बिखरओ तो,
 हे व्यथा कोकिले! गाओ तो!
       
        लू से तपती-जलती धरती,
        सावन की बातें याद न कर,
         रोओ मत, रोकर होता है
         इन प्राणों का उन्माद मुखर,

संसृति की क्षण-भंगुरता से,
आकाश कहीं झुक जाओ तो!
इतिहास कहीं रुक जाओ तो !
मैं दूरागत प्रेमी तेरा-
जल-जल जीना सिखलाओ तो !
पतझाड़ तनिक मुस्काओ तो !
       
        आसान नाव पर चढ़-चढ़कर,
        करना लहरों को पार अधिक,
        मैं तम का पंथी, पतझड़ को,
        गाने वाला अलमस्त पथिक।

मैं छोड़ किनारा तैर रहा,
मझधार तनिक शरमाओ तो।
पतझाड़ तनिक मुस्काओ तो!

मर मर कर पतझड़ के मर्मर।
जी भर-भर जीवन गाओ तो।
तूफान मुझे दुलराओ तो!

        मधुमासों की रानी कह क्या-
        कलिगातों के मधु-मधु चुम्बन?
        शीतल का भान सरस-सुन्दर,
        अँगारों का हो आलिंगन,

यह जीवन-स्वर्ग चमक जाये,
जलने दो चरण बढ़ाओ तो।
अँगार चूमने आओ तो!
तुम नीलकंठ सा अमर बनो,
विष का प्याला पी जाओ तो।
पतझाड़ तनिक मुस्काओ तो!

        कलि के मधु-रस के शोषक की,
        मधुशाला में मिट जाना है।
        शोषित श्रमिकों का श्रम कण हीं,
        दे रहा सुरभि को ताना है।

श्रम करो श्रमिक बन तपो-जलो,
जग के जीवन जल जाओ तो।
मधुमास नहीं इतराओ तो!
पतझाड़ श्रमिक के श्रम कण पर,
मधुमास मनाते जाओ तो।
पतझाड़ तनिक मुस्काओ तो!

       इन्सान तुम्हीं अब न्याय करो,
       मधुमास मनाये जाने का।
       शोषण की जलती ज्वाला का,
       इतिहास छुपाये जाने का।

शोषित की बारी आती है,
तूफान तनिक उठ जाओ तो।
मनुपूतों शीश झुकाओ तो !
मधुमासों की अलमस्ती पर,
पतझाड़ तनिक छा जाओ तो।
पतझाड़ तनिक मुस्काओ तो।