भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुदगुदाये पवन फागुनी धूप में / ओम नीरव
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:58, 27 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम नीरव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeetika}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गुदगुदाये पवन फागुनी धूप में।
खिलखिलाये बदन फागुनी धूप में।
है न किंचित तपन या चुभन या घुटन,
रेशमी-सी छुअन फागुनी धूप में।
डालियाँ बाल-कोपल लिए गोद में,
दादियों-सी मगन फागुनी धूप में।
ठूँठ हरिया गए वृद्ध सठिया गये,
है अजब बाँकपन फागुनी धूप में।
गरमियाँ-सर्दियाँ मिल रहीं आप क्यों,
कुछ न करते जतन फागुनी धूप में।
प्रौढ़ तरु कर रहे माधवी रूप का,
संतुलित आचमन फागुनी धूप में।
ले विदा शीत नीरव पलट घूम कर,
कर रहा है नमन फागुनी धूप में।
————————————
आधार छन्द–वाचिक स्रग्विणी
मापनी–गालगा गालगा-गालगा गालगा