भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मइया ओढ़ के आएल / उमेश बहादुरपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:52, 1 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


गाबऽ गाबऽ गाबऽ यार ठूमरी।
मइया ओढ़के आएल हे लाल चूनरी।।
देख-देख मइया के कहे मोर मनमा।
मइया के चरनिया में हे चारो धममा।
लागऽ हे मइया ऐसे जइसे कोय सूनरी।। गाबऽ ...
ऊँचे रे पहड़बा पर मइया के डेरबा।
मइया के सबरिया हे देखऽ शेरवा।
ऐसे चमके मइया मोर जइसे कोय मूनरी।। गाबऽ ....
करऽ हे बहादुरपुरी मइया से विनतिया।
तोड़िहा ना मइया हमरा से पिरितिया।
तोहरे पर टिकल हे हम्मर ई जिंदगी।। गाबऽ...