दादक खटिया खड़ी कै दिहा / सन्नी गुप्ता 'मदन'
मेहरारू तू लइकै आया बात-बात पै मुँह बिचकावै।
हमरे गाँव गढ़ी कै दाना-पानी वकरे मन न भावै।
ऊ माँगै अंग्रेजी चेयर हमरे घर मा तख्ता बाटै।
हमरे हिंदी तक न आवै ऊ दिन भै अंग्रेजी छाटै।
ओका चाही कॉफी बिस्कुट हमरे घर मा बाटै माठा।
हम खायी भैवा हथपोइया ओका चाही तला पराठा।
तू तो भइया लाय कै मेहरी आज समस्या बड़ी कै दिहा।
अपने बूढ़े माई दादा कै तू खटिया खड़ी कै दिहा।।
दुइ जूनी कै जुरै न दाना मैडम का कइसे खुश करबा।
हमका तो लागत बा यक दिन यही के चक्कर मा तू मरबा
कुछ दिन ताय गया परदेशवा वहि से ई जिव कै मरि लाया
कीर्तन फगुवा छोड़ गाँव कै तू अंगरेजी गाना गाया।
करत बाय चौकीदारी अपने मेहरी कै शरम न आवै।
काल तलक जेका अपने माई दादक सेवा न भावै।
छोट-छोट तू जोड़ समस्या दुःख कै लम्बी लड़ी कै दिहा।
अपने बूढ़े माई दादा कै तू खटिया खड़ी कै दिहा।।
बिन जाने बिछी कै मंतर सापेक मुह माँ उंगरी डार्या।
उहै कहावत फिरू आय तू खूटा मा बझाय कै फार्या।
जेका तूरै चना न आवै भला बेल ऊ कइसे तूरे।
तोहरै जइसे खड़ा-खड़ा खाली मेहरी कै चेहरा घूरे।
जे केव आपन इज़्ज़त आदर मर्यादा का चहै लुटावै।
उहौ जाय कै एक ठी मेहरी शहरे से घर लइ कै आवै।
हमरे जीवन कै मुश्किल तू एक-एक अब घडी कइ दिहा।
अपने बूढ़े माई दादा कै तू खटिया खड़ी कै दिहा।।