लूलै लंगड़ पैदा होइहैं / सन्नी गुप्ता 'मदन'
कभौ न जूनिस ऑफिस जाबा
काम न एक्कौ ढंग से करबा।
खलिहर बइठ पान के गिमटिम
दिनभै खाली सुट्टा मरबा।
मिली बाय सरकारी कुरसी
अब ई मरत तलक न हीले।
इहै तोहार घमंड एक दिन
तुहका खड़े-खड़े मुँह लीले।
यक दिन घर भै बइठ दलानिम मूड पकरि कै साथे रोइहै।
घूस कै रुपया खाबा तौ फिर लूलै लंगड़ पैदा होइहैं।
घर मा रहे बिमारी लाखो
सुख से नाय केहू रहि पइबा।
बाबू बड़ी परेशानी बा
मुँह बनाय कै सबसे रोइबा।
लड़क्या रहे बहेल्ला बिलकुल
ऊ रुपया मा आग लगाये।
जब-जब मउका मिले कभौ तौ
ऊ इज़्ज़त कै नाव डुबाये।
बोये रहबा तू बबूल तौ वनही आम कहाँ आम लगवइहै।
घूस कै रुपया खाबा तौ फिर लूलै लंगड़ पैदा होइहैं।
मेहरारू अलगे घर फूंके
बिटिया करे रोज मनमानी।
नयी-नयी तू सुनबा रोजै
यनके दूनो जनेक कहानी।
देख-देख मनवा पछताये
रोये आँख रोय न पइबा।
अपने खेतेक फसल जरे तौ
का झूठै तू भूसा दइबा।
मिले न जब सुख कै दुइ जूनी इहै हाथ फिर रोटी पोइहै
घूस कै रुपया खाबा तौ फिर लूलै लंगड़ पैदा होइहैं।
मरबा हार्टअटैक से एक दिन
मज़ा नाय पूरा मिल पाये।
ठेलिक ठेला मचे नरकवोम
तब ई मन बइठा पछताये।
सबसे घूस लिहे रहबा तौ
बिन कान्हे कै घाटे जाबा।
जीयत तौ जइसे भी बीता
मरेयोक बाद तू धक्का खाबा।
राम कसम तोहरे मरगी पै सुख कै नींद ज़वारिभ सोइहै
घूस कै रुपया खाबा तौ फिर लूलै लंगड़ पैदा होइहैं।
मिलत बाय सरकारी वेतन
वोकै तू आनन्द उठावा।
सुख से खा अपना दुइ जूनी
बइठ घरे हरि नाम बोलावा।
लड़केंन के दा संस्कार तू
अउर प्रेम से रास रचावा।
चार दिने के खेल ब जीवन
यहमा तू सारा सुख पावा।
संस्कार मा पौध पले तौ यै फिर देइहै शीतल छहियै।
घूस कै रुपया खाबा तौ फिर लूलै लंगड़ पैदा होइहैं।