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पृष्ठभूमि / जीवनानंद दास / मीता दास

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पृष्ठभूमि के भीतर न जाने कब झाँक कर मैंने तुम्हें देख लिया था
करीब दस-पन्द्रह साल पहले, उस वक़्त तुम्हारे बाल काले थे
मेघों में छिपकर बिजली-सा दमकता
तुम्हारा तेजस्विनी-सा चेहरा... चीन्हता है अन्तर्यामी।
तुम्हारा चेहरा : चारों दिशाओं के अन्धकार में ठीक जल का कोलाहल
कहीं भी किसी समुद्र तट पर कोई नियन्त्रण नहीं... तेज हवाओं पर
फिर भी शिकारी मछेरे, इस युद्ध से थक कर लौट ही आते हैं;

वे युवा है, वे मृत हैं । मृत्यु फिर भी मेहनत से मिलती है ।
वक़्त को कभी भी किसी ने काली सूची में नहीं डाला
फिर भी तुम्हारे चेहरे की ओर आज भी उसे रोक कर खड़ी है, नारी....
हो सकता है सुबह हम सब इनसान थे,
उसी के निर्देश पर सूर्य का वलय फैला है आज इस अन्धे जगत में
समुद्र के चारों ओर — जेसन ओडिसी की फ़िनिश और
बाहर फैली हुई अधीर रोशनी...
धर्म के शोक का, ख़ुद का ही नहीं, फ़िलहाल कल
हम और आज भी वहन करते हैं,
समुद्र से बेहद कठिनाई से मूँगा लूटकर
तुम्हारी आँखों का विषाद कम करने के लिए....
प्रेम का दिया बुझा दिया प्रिये ।।