भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेघगीत / अनिरूद्ध
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:21, 7 मार्च 2019 का अवतरण
’मेघगीत' के कुछ अंश इहाँ दे रहल बानी
जब जब पुरवइया संदेसवा पठावे
बदरवा ई दउर दउर आवे
काजर कर साँवर बदरवा ई दउर दउर आवे
बिलमावे केहू ना,मारे जादो मंतर
परदेसी घर आवे,उमड़त हर गाँव डगर
अइसन प्रेमी केहू दीठ ना लगावे
तिरिछे लखि बिजुरी,घन घुंघुटा अइसे ताने
साजन से जइसे रूसल गोरी ना माने
बिंदिया चमके बुँदिया झाँझर झमकावे
दादुर ढोलक ढमके, झनके झिंगुर सितार
बादर के मादर प गावे मौसम मल्हार
सोहर-झूमर -कजरी खेत-खेत गावे
बदरवा ई दउर दउर आवे