भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कपड़े / शेरको बेकस / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:07, 8 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेरको बेकस |अनुवादक=अनिल जनविजय |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बेकस अक्सर कहा करते थे —
वह हर ख़ुशी
जिसे पहन लेता हूँ मैं
उसकी बाँहें
या तो बहुत छोटी होती हैं
या बहुत लम्बी
या ढीली होती हैं वे
या काफ़ी कसी हुई
और जब
किसी दुख को
पहनता हूँ मैं
तो एकदम ठीक बैठता है बदन पर
मानो सिया गया हो उसे
मेरे लिए
कहीं भी, किसी भी समय
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय