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तूँ घी के दिया जराबऽ हऽ / उमेश बहादुरपुरी

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तूँ घी के दिया जराबऽ इऽ ई तो हम सब जानऽ ही।
गली-गली आउ कूचा-कूचा हमहूँ खाके छानऽ ही।
तूँ हखो सूरमा-भोपाली एकरा में कोय शक हे न´्
तोरा पर अँगुरी उठबे के हमरा सबके हक हे न´्।
सरकारी रुपइया अपने-अपन खाता में टानऽ ही।।
तूँ घी ....
गिरगिट जइसन रंग बदलऽ हऽ डेगे-डेग संग बदलऽ हऽ।
हो झूठमूठ के तोर लड़इया छने-छन जग बदलऽ हऽ।
डालऽ तू चेहरा पर नकाबऽ पर हम सबके पहचानऽ ही।।
तूँ घी ...
जब जान देबे के बेरी आबे हमनी के मुड़ी कटाबऽ हऽ।
एयरकंडीशन में बैठके गाँड़ से सटाबऽ हऽ।
तोर तेजी के की कहना? ई त हम-सब जानऽ ही।।
तूँ घी ....
हम्मर केहू सुने न सुने पर तोहर तो सब सुनबे करतो।
हमरा न´् नेनुआँ हे नेमान तोरा हीं कद्दू फरबे करतो।
तूँ खुद के समझऽ तीसमार खाँ पर हम न´् तोरा रानऽ ही।।
तूँ घी ....
हम्मर घर में सूखा-दहाड़ कभिओ टूटे दुख के पहाड़।
तोहर बबुआ छुट्टा घूमे जइसे बिन फाहा के साँढ़।
बने ले तोरा जइसन हम कभिओ न´् मन में ठानऽ ही।।
तूँ घी ....
तूँ की जानबऽ हम्मर दुख? तोरा चाही बस सूखे-सूख।
मक्कारी ऐय्याश के भरल हो तोहरा में बस भूख।
तूँ बैठल मउज उड़ाब हऽ हम खून-पसीना सानऽ ही।।
तूँ घी ....
मगही के दशा बदले न बदले तोर दशा बदलबे करतै।
स्वर्ण झूला पर झूल-झूल के तोहरा मन मचलबे करतै।
तोर चाल-ढाल के खिस्सा हम सगरे बखानऽ ही।।
तूँ घी ....
तूँ कहलाबऽ हऽ भाषाविद ई त तोहर बड़गर हे जिद।
चलऽ हे तोहरे छत्र-छाया में ई धरती अउ उसँसे हिंद।
ई युग के हा पुरोधा तूँ इहे ले हम-सब कानऽ ही।।
तूँ घी ....