भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अजबे नगरिया के रीत / उमेश बहादुरपुरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:49, 9 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ई त अजबे हे नगरिया के रीत।
बाबू कोय न करऽ हे इहाँ पिरीत।।
हर कोय देखऽ हे अँखिया गुर्रा के।
तनिको न ताके प्यार से हमरा के।
हम केकरा के कहूँ मनमीत।। बाबू ....
केकरा से करी पिरितिया के आसा।
कोय न´् बोलऽ हे प्यार के भासा।
हमरा तो लागऽ हे हर कोय तीत।। बाबू ....
मनमा में बसल सामली सुरतिया।
अँखिया के आगु मोहनी मुरतिया।
उहे तो लेलकइ हम्मर मन जीत।। बाबू ....
बाँटले फिरऽ हे जे प्यार के संदेसा।
कोय के न´् ओकरा पर हे अंदेसा।
इहाँ तो लेलकइ उहे जगजीत।। बाबू ...