भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर बात हम कहते रहें / मनीष कुमार झा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:51, 9 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष कुमार झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कुछ तुम कहो
कुछ मैं कहूँ
हर बात हम कहते रहें
यह प्रीति नदी बनकर बहे
सागर किनारा हो
मैं एक धारा प्रेम की, तुम एक
धारा हो
तुम भी बहो
मैं भी बहूँ
हम साथ ही बहते रहें
जो गम तुम्हारा है
वही मेरा भी हो जाये
पहले बँटे फिर गम हमारा
साथ खो जाये
कुछ तुम सहो
कुछ मैं सहूँ
हम साथ में सहते रहें
मंजिल किसे तब चाहिए
जब साथ में तुम हो
क्यों भाग्य से सिकवा करूँ
जब हाथ में तुम हो
कुछ तुम चलो
कुछ मैं चलूँ
हम साथ ही चलते रहें