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तूँ हमर उपहास करऽ हऽ / उमेश बहादुरपुरी

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तूँ हमर उपहास करऽ हऽ हम इतिहास बनाबऽ ही।
समझऽ हथ सब घर में मूरख बाहर खास कहाबऽ ही।
सोंच-समझ हमरा जइसन न´् हमरा जेतना जोश हो।
हऽ तूँ केतना पानी में न´् तोहरा के होश हो।
समझल करऽ तूँ खुद के बुधगर हम अजनास कहबऽ ही।।
मोघ अगर पइमाना हे तनि हमरो मोछ निहारऽ।
जेतना लम्हर सौर हे बाबू ओतने गोड़ पसारऽ।
तूँ की हऽ ई तूँ ही जानऽ हम सबद-संतराश कहाबऽ।।
तोहर हाँथ में लाठी-पइना हम्मर नाता स्याही से।
हाँथ हमेशा मलते रहबा न´् टकराबऽ कलम सिपाही से।
तूँ बड़-बड़ डिगरी लेले घूरऽ हम अव्वल क्लास कहाबऽ हीं
चलल करऽ मत एैठ-एैठ देखऽ हमरो कमर में लोचहे।
धुरतइ में तूँ माहिर हऽ पर हम्मर बढ़ियाँ सोंच हे।
सारस्वत के किरपा भेल सरस्वती के दास कहावऽ ही।।
कोयी हमरा कवि कहऽ हे कोयी कहऽ हे नायक।
चाहे कोय भी नाम हमर दऽ हम अविनाश कहाबऽ ही।।