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आगू चलऽ हे रुपया / उमेश बहादुरपुरी

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दुनिया चलऽ हे पाछु-पाछु रे भइया
आगू चलऽ हे रुपइया,
सबसे आगु भागल जाहे
देखऽ समय के पहिया।।
वक्त के जे पहचानलक,
झुका देलक ऊ जमाना।
वक्त के बरबाद कइलक,
ऊ होगेल बेगाना।
तूँ भी वक्त के पहचानऽ,
आझ न´् त कहिया।। दुनिया....
वक्त जेक्कर साथ देलक,
त दुर्बल बनल दबंगा।
वक्त जेकरा छोड़ देलक,
त राजा बन गेल रंक।
वक्त के आगु सभे झुकल,
राजा हो या रहिया।।
बहादुरपुरी के कहना मानऽ,
वक्त के न´् भुलइहा।
वक्त से तूँ डरके रहिहा,
वक्त के न´ अजमइहा।
आबऽ मिलके गाबऽ गाना,
वक्त के बनऽ सिपहिइया।।