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सजनियाँ की होतइ / उमेश बहादुरपुरी

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बहऽ हे सावन में गरम बयार सजनियाँ की होतइ।
फटल खेतवा में बड़का दरार रोपनियाँ की होतइ।।
ऐसन गरमी देख-देख के जेठ-बइसाख लजा हे।
देलन बिधाता जाने कइसन कउन जनम के सजा हे।
रोबऽ हे अँखिया जार-बेजार सजनियाँ की होतइ।। फटल ....
दूर-दूर तक हमरा कहयँ पानी नजर न´् आबऽ हे।
आँख-मिचौली खेलते बदरा मनमाँ के ललचाबऽ हे।
काहे मौसम हो गेलइ बीमार सजनियाँ की होतइ।। फटल ....
दुलहिन जइसन खेत सजऽ हल हर बरीस सावन में।
मन-मयूरा नाचऽ हलइ हर बरीस सावन में।
बरसऽ हल दिन-रात रिमझिम फुहार सजनियाँ की होतइ।। फटल ....
कूक सुनऽ ही कोयल के न´् नाचे मोर पहिन पइजनियाँ।
कइसे गइतै हाँथ जोड़के झूमर अब दुलहिनियाँ।
कब अँखिया में छइतइ खुमार सजनियाँ की होतइ।। फटल ....