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ग़ज़ल / उमेश बहादुरपुरी

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दिल, दिलबर, दिलदार के अंदाज नया हे।
अबकी बसंती-बयार के मिजाज नया हे।।
फूल खिलल रंग घुलल, हे दिल से दिल मिलल।
सुर सरगम संगीत आउर साज नया हे।। अबकी ....
दिलबर के दीदार ले तरस रहल अँखिया।
मिठगर बोल कोयलिया के अबाज नया हे।। अबकी ....
शम्स के नूर पड़ऽ हे भोर में जब शबनम पर।
मोती जइसन चमके के ई राज नया हे।। अबकी ....
दिलबर से नजर मिलते बदल गेल संसार।
की ई बसंत में मिलन के रिवाज नया हे।। अबकी ....
बिन पीयले इहाँ पर सबके सब डोल रहल।
साकी हे नया या साकी के नाज नया हे।। अबकी ....
शरबती अँखियन में जे गोता मार लेलक।
बस इनखे से मोहब्बत के ताज नया हे।। अबकी ....