उदास उल्लू ... / बरीस सदअवस्कोय / अनिल जनविजय
उदास है उल्लू,
अकेला है उल्लू
क़ब्र पर बनी मीनार पर रोता है,
शाम को जब वह उदास होता है,
जब घास उग रही होती है।
अन्धे हैं फूल,
मृत हो चुके हैं फूल
अन्तिम संस्कार में दुख सहन करते हैं,
शाम के समय निराशा वहन करते हैं,
जब अन्धेरा छा रहा होता है।
दीवाने हैं शब्द,
अबोले हैं शब्द
ठण्डी छाती को फाड़कर निकलते हैं,
शाम को विफल हो बिखरते हैं,
जब उल्लू चीख़-चिल्ला रहा होता है।
1906
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Борис Садовской
Печальная сова...
Печальная сова,
Одинокая сова
Плачет в башне над могилой
В час вечерний, в час унылый,
В час, когда растет трава.
Ослепшие цветы,
Помертвелые цветы
Дышат грустью погребальной
В час вечерний, в час печальный,
В час грядущей темноты.
Безумные слова,
Несказанные слова
Рвутся из груди холодной
В час вечерний, в час бесплодный,
В час, когда кричит сова.
1906