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छो के सब परदा / उमेश बहादुरपुरी

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बलम मीठा पान खइबऽ की डाल दी जरदा। बलम ....
तनी आबऽ न प्यार कर ल छोड़ के सब परदा।
मीठा पान खइबा तो खाली ओठ लाली।
जरदा में दुनहुँ मजा होली अउ दीवाली।
आझ दुनहुँ मिलके उड़ा देबै गरदा।। बलम ....
देखला होत जिनगी में ऐसन न´् जवानी।
हमरा में सटते याद आ जइथुन नानी।
दूर-दूर भागऽ हऽ इहे हा मरदा।। बलम ....
बड़ी-बड़ी बात काहे बालऽ हऽ ए रानी।
हमरा से टकरइते ही उतर जइतो पानी।
हमरा न´् खिसियाबऽ हम बक्सर के बरदा।।
खिलाब मीठा पान या खिलाबऽ चाहे जरदा।
हर हाल में उठा देबो आझ तोहर परदा।
बलम मीठा पान खइबा की डाल दी जरदा।।