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विहग वृक्ष पर चहचहाने लगे हैं / रंजना वर्मा

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विहग वृक्ष पर चहचहाने लगे हैं।
नये गीत ज्यों गुनगुनाने लगे हैं॥

उगे देवता सूर्य पूरब दिशा से
नवल रश्मियों को लुटाने लगे हैं॥

लिये चन्दनी गन्ध जो चल रहा है
पवन के वसन सरसराने लगे हैं॥

गिराया किये पंखुरी रात सारी
सुमन कामिनी के लजाने लगे हैं॥

स्वयं में सिमटने लगी है कुमुदिनी
कमल पुष्प फिर मुस्कुराने लगे हैं॥

विदा हो गयीं स्वप्न की सारी परियाँ
नयन सत्य को अब जगाने लगे हैं॥

उठो अब बिताओ नहीं वक्त यों ही
करो कर्म सन्देश आने लगे हैं॥