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इक हकीकत थी फ़साना बन गयी / रंजना वर्मा

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इक हकीकत थी फ़साना बन गयी।
जिन्दगी की मौत से फिर ठन गयी॥

हुई बेबस चंद सिक्कों के लिये
आज अर्थी पर चढ़ी दुल्हन गयी॥

था किसी का जब अहम टकरा गया
झेल एसिड की जलन विरहन गयी॥

छेड़ता ही जब रहा संसार तो
छोड़ माया मोह बन जोगन गयी॥

जी रही थी प्यार की लेकर ललक
आस जब टूटी वह वृंदावन गयी॥

सिर्फ़ काँटे ही मिले हर राह में
बस इसी से छोड़ वह गुलशन गयी॥

जिंदगी को जब तपाया आग में
मैल जलने पर वह बन कंचन गयी॥