Last modified on 13 मार्च 2019, at 09:53

तुम्हारे चीख़ने से / रजनी तिलक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:53, 13 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रजनी तिलक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हारे चीख़ने-चिल्लाने से
मेरा मॉरल थोड़ा डाउन ज़रूर हुआ था
मैं बिख़रने लगी
मेरी आँखें नहीं दिल रोया था

मैंने थोड़ा सोचा फिर
मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया
छोटी समझकर

तुम्हारी नज़रों में नाराज़गी नहीं,
बेअदबी देखी
तुम्हारे अन्दर घुटन नहीं,
बिलबिलाती महत्वाकाँक्षा देखी
अपने प्रति प्यार नहीं, ईर्ष्या देखी
रिश्ते में लगी दीमक देखी

लो अब गुज़रो जिस भी डगर से
मैंने वापसी ले ली
करो प्रतिस्पर्धा मुझसे, ईर्ष्या नहीं
तुम्हारे लिए राह छोड़ दी
करना है कुछ जीवन में
पहले अपना उत्सर्ग करना पड़ता है।