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साम्य / महेन्द्र भटनागर
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गाता हूँ
विजय के गीत
गाता हूँ !
मृत्यु पर
जीवन जगत की जीत
गाता हूँ !
अति प्रिय वस्तु
जीवन-विस्फुरण की
बेधड़क जयकार
गाता हूँ !
क़ब्रिस्तान के आकाश में
जो गूँजते हैं स्वर
परिन्दों के
स्वच्छन्द रिन्दों के
अनुवाद हैं —
मेरी
जीवन-भावनाओं के !
सहचार हैं —
मेरी
जीवन-अर्चनाओं के !