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दह्शतअंगेज़ / महेन्द्र भटनागर
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सावधान !
फहरा दी है
हमने
घर-घर, गाँव-गाँव, नगर-नगर
जीवन की
नव-जीवन की
लाल पताकाएँ !
बस्ती-बस्ती, चैराहों-सतराहों पर,
यहाँ-वहाँ -
ठाँव-ठाँव !
लहरा दी हैं
रक्त-पताकाएँ !
अब नहीं चलेगा
आतंकी, घातक, जन-भक्षी,
मद-ज्वर-ग्रस्त
मरण-राक्षस का
कोई भी दावँ !
तन के भीतर घुस कर
घात लगाता है,
अपने को अविजित यम का
दूत बताता है,
तन के भीतर
विस्फोटक-बारूद
बिछाता है,
और ...
अदृश स्थानों से
छिप-छिप कर
दूरस्थ-नियन्त्रित-यंत्र चलाता है !
देखें
अब और किधर से आता है !