रेसेशनल / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी
{..'रेसेशनल' उस गीत को कहते हैं जो किसी धार्मिक उपासना के आख़िर में गया जाता है...
यह कविता 'किपलिंग' ने 1897 में रानी 'विक्टोरिया' की डायमंड जुबिली के भव्य समारोह की समाप्ति के बाद लिखा था.. उसकी फौज़ी भव्यता पर टिप्पणी करते हुए..}
हमारे पिताओं के ईश्वर, प्राचीन
देवता हमारे दूर पड़े युद्ध-सीमा के
जिसके महिमामय हाथों के नीचे
हमने साम्राज्य बनाये हैं, ताड़ और देवदार के
स्वर्ग की फ़ौज़ के देवता, तथापि हमारे साथ रहो
कदाचित न हम भूलें! कदाचित न हम भूलें!
ये कोलाहल और ये शोर ख़त्म हो जाता है
जहाज़ों के कप्तान और राजा विदा हो जाते हैं
तब भी शेष रहता है तुम्हारा प्राचीन बलिदान
एक विनीत और मनोव्यथित हृदय
स्वर्ग की फ़ौज़ के देवता, तथापि हमारे साथ रहो
कदाचित न हम भूलें! कदाचित न हम भूलें!
दूर-दूर से बुलाई हमारी नौसेनाएं बिखर जाती हैं
मशालें रेत के टीलों और टापुओं में अलोप हो जाती हैं
देखो, बीते कल का हमारा सब धूमधाम
निनवे और टायर शहरों की उजाड़ के सदृश है
इन कौमों के न्यायाधीश, तथापि हमें क्षमा कर दो
कदाचित न हम भूलें! कदाचित न हम भूलें!
यदि बल के दृश्य में मत्त, फिसल जायें
हमारी ये बेकाबू ज़बाने, जिनकी डरों में न हो तुम्हारा आदर-प्रेरित भय
असभ्य, या नियम-कानूनों के परे रहने वाले तुच्छ जाति के लोगों की तरह से
हम अहंकार दिखाने लगें
स्वर्ग की फ़ौज़ के देवता, तथापि हमारे साथ रहो
कदाचित न हम भूलें! कदाचित न हम भूलें!
उन काफ़िर दिलों के लिए, जो अपना विश्वास
बदबूदार धूंओं वाली ट्यूबों और लोहे के धारदार टुकड़ों में रखते हैं
सारे साहसी गुबारों, जो गुबार बनाते जाते हैं
और रक्षकों, जो तुम्हें नहीं पुकारते रक्षा के लिए
उन्मत्त अहंकार और मूर्खतापूर्ण शब्दों के लिए
तुम्हारी दया हो तुम्हारे लोगों पर, ओ ईश्ववर!