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निवेदन / महेन्द्र भटनागर
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मृत्यु —
क्या हुआ
यदि तुम स्त्री-लिंग हो,
तुम्हें मित्र बना सकता हूँ !
शरमाती क्यों हो ?
आओ
हमजोली बनो ना !
हमख़ाना नहीं तो
हमसाया बनो ना !
चाँद के टुकड़े जैसी तुम !
सामने वाली खिड़की से
झाँकना,
आँकना !
और एक दिन अचानक
मुझे साथ ले
चल पड़ना
प्रेत-लोक में !
यों ही
नोकझोंक में !