Last modified on 16 मार्च 2019, at 20:00

गंगा दीन / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी

सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:00, 16 मार्च 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम बात कर सकते हो शराब और बियर की
जब सुरक्षित होते हो यहाँ क्वार्टरों में,
जब एल्डरशॉट<ref>दक्षिणी इंग्लैंड के हैम्पशायर प्रांत में स्थित एक कस्बा जो ग़ैर-युद्ध-काल में अंग्रेज़ी सेना का निवास और प्रशिक्षण केंद्र होता था</ref> में होते हो और अठन्नी-चवन्नी वाली
टिकटिया अखाड़ेबाज़ी में हिस्सा लेते हो;
लेकिन जब वक़्त होता है युद्ध का
तुम्हें अपना काम करना होता है बस पानी पर,
और तुम उसका वो जूता चाटोगे जिसके पास होगा यह।
देखो अब भारत की तीखी धूप वाली जलवायु में,
जहाँ मैं गुज़ार रहा था अपना वक़्त
महामहिम रानी की सेवा में,
उन सारे काले लोगों के कर्मीदल में
जिस एक सबसे अच्छे शख़्स को मैंने जाना
वो हमारी पलटन का भिश्ती था, गंगा दीन.
वह था.. "दीन! दीन! दीन!
"हे ईंटे की गाढ़ी बुकनी के लंगड़ धेले, गंगा दीन!
"हे! जल्दी हिदर आओ!"
"वॉटर, पानी! पानी लाओ!
"हे लिजलिजी नाक वाले पुरानी मूरत!"

वह जो वर्दी पहनता था
कुछ ख़ास नहीं थी पहले तो,
और बल्कि औरों की पोशाक से आधी थी,
एक मुड़ा-सुड़ा सा कुछ चिथड़ा
और एक बकरी के चमड़े से बना पानी का थैला
रणभूमि के लिए उसे पूरी सज्जा बस यही मिलती।
जब पसीने-तर फौज़ की रेलगाड़ी
पड़ी होती थी किसी छोटी पटरी पर पूरे दिन,
कि जहाँ की गर्मी तुम्हारी भीगी भौंहों को ही मानो रेंगा देना चाहती है,
हम चिल्लाते थे, "ओ भाई!"
जब तक कि हमारे गले ईंट की तरह सूख नहीं जाते,
फिर हम उसे बुरा-भला कहते थे
क्योंकि वो नहीं दे पाता था हम सबको अपनी सेवा।
यह था.. "दीन! दीन! दीन!
"हे काफ़िर, कहाँ रह गए थे बे अशुभ-कारक?"
"तुम तोड़ा जल्दी डालो लाने में
"नहीं तो मैं मारो तुम्हें इसी मिनट
"अगर तुम नहीं भरे मेरा हेलमेट, गंगा दीन!"

वह लंगड़-लंगड़ के जाता और लाता रहता
जब तक ख़तम नहीं होते वे सबसे लंबे दिन;
और वह, जैसे लगता डर का कुछ मतलब ही नहीं समझता था।
अगर हम धावा बोलते या हमला करते,
तुम अपनी इस खोपड़ी की शर्त लगा सकते हो,
कि वह इंतज़ार करता रहेगा पचास कदम पीछे एक किनारे।
अपने पीठ पर अपना वो पानी का थैला लिए,
वो हमारे हमले पर उछलेगा,
और हमें देखता रहेगा जब तक बिगुल नहीं आवाज़ कर दे हमारी निवृत्ति का;
और अपनी पूरी गंदी चमड़ी के बावज़ूद
वह उजला था, बिल्कुल उजला, अंदर से
जब वह करने जाता था किसी गोली खाये चोटिल की सेवा!
यह था.. "दीन! दीन! दीन!"
जब गोलियों से धूलें उड़ाते-उड़ाते घास पर
जब ख़ाली हो जाते कारतूस,
तुम सुन सकते थे उन आगे की कतार वालों को चिल्लाते हुए,
"हे! गोला-बारूद वाले खच्चर और गंगा दीन!"

मैं कभी न भूलूँगा वह रात
जब मैं गिर पड़ा था लड़ाई में एक तरफ़
एक गोली खाए वहाँ जहाँ होनी चाहिए थी मेरी बेल्ट-प्लेट।
मैं दम घुटने से बिल्कुल पागल हुआ जा रहा था प्यास के कारण,
और वह शख़्स जिसने सबसे पहले मुझे देख लिया
वो था हमारा भला, बूढ़ा, खीस निकालता, कराहता, गंगा दीन।
उसने मेरा सिर ऊपर उठाया,
और पट्टी बाँधी जहाँ से मेरी देह में हो रहा था रक्तस्राव,
और आधा लोटा पानी दिया बचा हुआ।
यह तैरते सूक्ष्मजीवियों और दुर्गंध से युक्त था,
लेकिन उन सारे पेयों में जो मैंने पीया है,
हूँ मैं सबसे ज़्यादे कृतज्ञ उसका जो मुझे गंगा दीन ने दिया।
यह था.. "दीन! दीन! दीन!
"यहाँ एक भिखारी है अपने प्लीहे में खाये हुए गोली"
"वह चबाये जा रहा है यह मिट्टी,
"और चारो तरफ़ मारे जा रहा है हाथ-पाँव:
"भगवान के लिए, पानी ले आओ गंगा दीन!"

वह मुझे दूर ले गया
उधर जहाँ पड़ी थी एक डोली,
इसी बीच एक गोली आई और साफ़ गुज़र गयी इस भिखारी के पास से।
सुरक्षित अंदर रख दिया उसने मुझे,
और वह मरा इससे ज़रा पहले,
"उम्मीद है आपको आपका पेय पसंद आया.." कहता है गंगा दीन।
तो मैं मिलूँगा उसे बाद में
वहाँ जहाँ वह चला गया है
जहाँ दोगुना ड्रिल होती है और जहाँ कैंटीन नहीं होती।
वह कोयलों पर बैठता होगा पालथी मारे
और शापित बेचारों को दे रहा होगा पानी,
और गंगा दीन से एक बड़ा घूँट, मुझे मिलेगा नर्क में!
हाँ, दीन! दीन! दीन!
तुम कि 'लैज़रुस'<ref>'मैरी' का भाई 'लैज़रुस' जो ईसा मसीह द्वारा मृत्यु से जगा दिया गया था</ref> की मिट्टी के बने, गंगा दीन!
भले मैंने तुम्हें बेल्ट से मारा और छिल दी तुम्हारी चमड़ी,
उस जीवंत ईश्वर के आगे जिसने बनाया तुम्हें,
तुम कहीं बेहतर आदमी हो मुझ से, गंगा दीन!