भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तसव्वुर का एक आइना चाहती हूँ / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:49, 19 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तसव्वुर का इक आइना चाहती हूँ
अब अपनी अना देखना चाहती हूँ
बहुत दूर मझधार से हैं किनारे
तेरा नाम ले डूबना चाहती हूँ
समझता नहीं है जो उल्फ़त की बातें
उसे हर घड़ी सोचना चाहती हूँ
अँधेरी निशा में जो टूटा सितारा
ख़ुदा से तुझे माँगना चाहती हूँ
मिले वस्ल या हिज्र के ग़म मुझे मैं
यही प्यार का सिलसिला चाहती हूँ