भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब किसी की नहीं कदर होगी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:39, 19 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जब किसी की नहीं कदर होगी
ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी
है ये दस्तूर इस जमाने का
रात बीतेगी तब सहर होगी
आँसुओं को भी धलकन होगा
पीर यूँ ही नहीं सबर होगी
कोई अपना ही जब बने दुश्मन
वो ही बर्बादियों का दर होगी
कोशिशें कीं न पर मिली मंजिल
रह गयी कुछ कहीं कसर होगी