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हाथ अपने अगर उठा लेंगे / रंजना वर्मा

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हाथ अपने अगर उठा लेंगे
हम भी मंजिल ज़रूर पा लेंगे

टूट जाते हैं रोज भी तो क्या
ख्वाब आँखों में फिर सजा लेंगे

यूँ तो हमदर्दियाँ भी हैं महंगी
अश्क़ दो चार तो बहा लेंगे

अपनी हिम्मत अगर रहे जिंदा
ग़म की बारिश में भी नहा लेंगे

फिर भटकने का डर नहीं होगा
एक दीपक अगर जला लेंगे