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बहुत हो चुका / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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1
आग पर तुम हर एक किताब रखना
आँसुओं का भी सदा हिसाब रखना।
जलाकरके पन्ने जलना तुम्हें भी
याद इतना पाठ अब जनाब रखना।
2
विषधरों के बीच बीती है ज़िन्दगी
टूटे घट -जैसी रीती है ज़िन्दगी
घाव हुए हज़ारों और हम अकेले
बोलो फिर कैसे ये सीती ज़िन्दगी।
3
उम्मीदों की बगिया मुरझाने लगी है
किस्मत भी अब तो आग लगाने लगी है
जीने की इच्छा अब मन में नहीं बाकी
मौत आकरके पंजा लड़ाने लगी है।
4
दग़ा देने वाले सवाल पूछते हैं
पिलाकरके ज़हर फिर हाल पूछते हैं
चन्दन -सी ज़िन्दगी सब राख कर डाली
कितना हुआ हमको मलाल पूछते हैं।
5
खुद से रही है शिकायत हमारी
किसी से रही न अदावत हमारी
बहुत हो चुका अब चलना पड़ेगा
माफ़ करना तुम हर आदत हमारी।
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