भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उछाळौ.. / रेंवतदान चारण

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:12, 3 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेंवतदान चारण |संग्रह=चेत मांनखा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सज्जौ अेक संघट्टण, पंथ पलट्टण, राज उलट्टण आज बढ़ौ
मन में मिनखापण नैण सुरापण, खांधै खांपण मेल कढ़ौ
तपै अम्बर भांण धरा किरसांण, पसीनै रै पांण ज पाकत खेती
पण मूंछा रै तांण कियां करडांण, बिनां घमसाण कोई लाट ले खेती!

ढांणी रै ढांणी अखंडी व्है उच्छब, गाळ कसूंबौ रै ढोल ढमक्कै
डंकै री चोट त्रंबाळ धमक्कै, धरती रा किरसांण धमंकै
सज्जौ अेक संघट्टण, पंथ पलट्टण, राज उलट्टण आज बढ़ौ
मन में मिनखापण नैण सुरापण, खांधै खांपण मेल कढ़ौ

जांणै कहरी गेह सूं आज कढ्यौ, जाणै मेह प्रचंड तूफान चढ्यौ
जांणै बीज पळापळ मेंह चढ्यौ, जांणै तीड धरातल धेर चढ्यौ
जांणै पंछि झपट्टण बाज चढ्यौ, जांणै बीज कड़क्कत गाज चढ्यौ
सज्जौ अेक संघट्टण, पंथ पलट्टण, राज उलट्टण आज बढ़ौ
मन में मिनखापण नैण सुरापण, खांधै खांपण मेल कढ़ौ