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सहभाव / महेन्द्र भटनागर
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आओ --
दूरियाँ
देशान्तरों की
व्यक्तियों की
अत्यधिक सामीप्य में
बदलें।
बहुत मज़बूत
अन्तर-सेतु
बाँधें !
आओ --
अजनबीपन
हृदय का
अनुभूतियों का
सांत्वना
आश्वास में
बदलें।
परस्पर मित्रता का
गगन-चुम्बी केतु
बाँधें !
आओ --
अविद्या-अज्ञता
धर्मान्तरों की
भिन्नता विश्वास की
समधीत सम्यक् बोध में
बदलें।
सुनिश्चित
विश्व-मानव-हेतु
साधें!