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पैमाना / बाल गंगाधर 'बागी'
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ज़िन्दगी जीने के पैमाने बदल देती है
होठों की हंसी जब आंसू में बदल देती है
उदासी का मौसम यतीमखाने1 में देखो
जो अपने ही घर से बाहर निकाल देती है
ज़मींदारांे को दो गज जमीं नहीं मिलती
लगाई उनकी आग उनको ही जला देती है
जो तारीफ में अपने अफसाने हजार गढ़ते हैं
मगर सच्चाई दुनिया से रू-ब-रू होती है
अक्सर आंख में सूरज भी ढल जाते हैं
नाकामी दिल को वो खाई बना देती है