बाग़ियों का विद्रोही स्वर / बाल गंगाधर 'बागी'
बाग़ी तेरी अर्थी को, वह लोग न हाथ लगायेंगे
जिनकी दीवार पे लिखे हो, शोषित जाति मिटायेंगे
कुछ हँसेंगे कुछ रोयेंगे, गलियायेंगे कुछ गुस्से में
कुछ अलविदा कंधों पर लेकर, आंसू में नहलायेंगे
जातिवाद से लड़ने वाला, बाग़ी एक इंसान था
शब्द बग़ावत के जिसके, मरते ही उग जायेंगे
दुन्नन की नज़रों से गाली, टकटक मिलती जायेंगी
जब नीले कफ़न पे आंसू से, बग़ावत लिखें जायेंगे
बलात्कार हत्या शोषण, जड़ से दमन मिटा देना
कूटनीति कुछ ले लेना, जो शब्द मेरे समझायेंगे
गुर्राने वाले ज़ालिम की, आंखे जीभ कआ देना
उन लोगों के वंशज से, जो लौट कभी न आयेंगे
लोग हाथ को चूमेंगे, जिससे समाज के दर्द लिखे
‘बाग़ी’ जातिय गं्रथ सभी, भट्ठी में झोंके जायेंगे
दो फूल क़ब्र पे न मेरे, लाके कभी सजा देना
लड़ना उन दुश्मनों से, जो जाति को बचायेंगे