भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे गीतों का त्यौहार / बाल गंगाधर 'बागी'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 24 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नजरों में दलित दुनिया के जब, इंसान समझा जायेगा
उस दिन मेरे गीतों का, त्यौहार मनाया जायेगा
जुल्म अंधेरा रात घनेरी, जब काली घटा नहीं होगी
हर दिल की दीवारों को फूलों से सजाया जायेगा
रहमों करम पर जीने की, जब कोई जरुरत न होगी
अधिकार दीन दलितों का, फिर से न हड़पा जायेगा
युद्ध नहीं अब बुद्ध रहे, इंसा के दिल के आंगन में
यही मोहब्बत का सबको, पैगाम सुनया जायेगा
जब भूखी आंखें गुदड़ी में, सर रखके न सो पायेंगी
कोई दमन की दरिया का न, अश्क बहाया जायेगा
मां बहनों की इज्जत को, नीलाम न होने देंगे हम
‘बाग़ी’ गरीबां बस्ती को न, आग लगाया जायेगा