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तुम्हें लड़ना ही होगा / बाल गंगाधर 'बागी'

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यहाँ कोई भी अनजान
नहीं करता है विश्राम
यहाँ की स्थिति है ऐसी
यह बस्ती है सुनसान
यह बंजर हो गई धरती
नहीं है सरिताओं में प्राण
यहाँ सब मूक नायक हैं
तुम्हें कहना ही होगा
तुम्हें लड़ना ही होगा...

रेत की आंधियां चलती हैं
आये दिन बस्यिां जलती हैं
मिले पानी न बुझाने को
मिले रोटी न खाने को
फटे सब लोग हैं दिखते
न कपड़ा मिले पहनने को
डरते हैं लोग देख बदहाली
इस मनोदशा पे ऐसे इनको मरना होगा
शान्त रहो न तुम तो कुछ तो करना होगा...

भूखे प्यासे नंगे लोग बुलाते हैं
जाति लेके गाली उन्हें सुनाते हैं
कुछ लोग इन्हें राजनीति समझाते हैं
जो लूट घरों को इनके भाग जाते हैं
वह दुर्बलता पे रह-रह के पछताते हैं
बलवान अस्मिता उठो तुम्हें बदलना होगा
उठो तुम्हें सामंतवाद से लड़ना होगा