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प्रण / महेन्द्र भटनागर
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मानवी गरिमा सदा रक्षित-प्रतिष्ठित हो
प्रण हमारा !
भाग्य-निर्माता स्वयं हों हम,
शक्ति जनता की नहीं हो कम,
व्यक्ति की स्वाधीनता अपहृत न किंचित हो
प्रण हमारा !
एकता के सूत्र में बँधकर,
अग्रसर हों सब प्रगति-पथ पर,
धर्म-भाषा-वर्ण पर कोई न लांछित हो
प्रण हमारा !
दूर हो अज्ञान-निर्धनता
वर्ग-अन्तर-मुक्त मानवता,
अर्थ-अर्जित कुछ जनों तक ही न सीमित हो
प्रण हमारा !