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भय / राकेश रेणु

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एक दिन सब सँगीत थम जाएगा
सभागारों के द्वार होंगे बन्द
वीथियाँ सब सूनी होंगी
सारे सँगीतज्ञ हतप्रभ और चुप

कवियों की धरी रह जाएँगी कविताएँ
धरे रह जाएँगे सब धर्मशास्त्र
धर्मगुरूओं की धरी रह जाएँगी सब साजिशें
शवों के अम्बार में कठिन होगा
पहचानना प्रियतम का चेहरा

उस दिन पूरी सभ्यता बदल दी जाएगी दुनिया की
एक नया संसार शुरू होगा उस दिन
बर्बर और धर्मांधों का संसार
कापालिक हुक्मरानों का संसार