गिरगिट / राकेश रेणु
मुहावरों में कई तरह से जाना जाता है इसे
परम्परा में यह भय उत्पन्न करता है
विज्ञान हालाँकि अलग मत रखता है
परम्परा विज्ञान विरोधी है
लेकिन यह अलग विषय है ।
अनाज में यह घुन की तरह नहीं लगता
चूहे की तरह नहीं कुतरता ज़रूरी काग़ज़ात
इसकी मौजूदगी में छुपा नहीं होता प्लेग का भय
कीड़ों-फतिंयों से सफ़ाई करता घर की
बन न सका पूज्य
यह लघु-उदर-जीव
किसी लम्बोदर का कृपापात्र नहीं परम्परा में
जो तुच्छ हैं, लघु हैं – हेय हैं परम्परा में
लेकिन यह अलग विषय है
परम्परा से सीखा हमने
कि ज़हर है इसका जल-मल गेहूँ की दाने जितना
मनुष्य के गू-मूत के बारे में
क्या राय रखती है परम्परा
समाज के सबसे उपेक्षित लोगों की जमात-सा है यह
ठण्ड से ठिठुरता, शीतलहर की पेट भरता
मनुष्य का बेहतर मित्र हो सकता है निर्वाक
लेकिन मनुष्य में आस्था कैसे भरे यह
परम्परा से कैसे लड़े यह ?
— कभी मज़बूत होती होगी आस्था परम्परा से
विश्वास तोड़ती है अब यह
लेकिन यह अलग विषय है ।