भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भूल जाओ जलावतनों को / ज्योत्स्ना मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उन जलावतनों को भूल जाओ
भूल जाओ
उन तमाम गीतों को
जो चिनारों ने साझा किए थे
आसमानों से ।

भूल जाओ उन सभी
कहकहों को
जो हवाओं ने डल झील के साथ
मिल के लगाए ।

कालीदास,
सोमदेव ,वसुगुप्त,
क्षेमराज,जोनराज,
कल्हण, बिल्हण की तो
वैसे भी किसे याद है

भुला दो लल्द्यद को भी
भुला दो, हब्बा खातून की सदा
दीनानाथ नादिम
और मोतीलाल क्यमू की किताबें
हवाले कर दो दीमकों के

मण्टो को पाकिस्तान भेज दो
चक़बस्त को भूलना मत भूलना ।

उफ़क के किनारों को ताक़ीद कर दो

सावधान रहें
रातों की बेहिसाब तारीक़ियों से
कि उग आता है बार-बार
एक बगावती चान्द
अग्निशेखर
उसे जलावतन करो
जल्दी करो ।

बारूदी सुरंगों से पाट दो
खेल के मैदान
बो दो केसर की क्यारियों में
एके - फोर्टी सेवन
सुलगा दो स्कूलों की मेज़ें, कुर्सियाँ
ताले डालो विश्वविद्यालयों में ।

ध्यान रहे यहीं से लौटने
की कोशिश करेंगें वो
अपनी ज़मीन की मुहब्बत के मारे हुए लोग ।

नदियों के नाम बदल दो
वो उन्हें पुराने नामों से ढूँढ़ते रह जाएँगें
बदल दो रास्तों के नक़्श
नेस्तनाबूद कर दो
उनके घर ।

जल्दी करो,
वरना वो लौट आएँगे ।


हरगिज़ न भूलना
राजतरंगिणि को दफ़न करना
इतिहास में बड़ी ताक़त होती है
दिलों को बदलने की ।

वो सिखा देंगें
सहिष्णुता का पहला पाठ
त्रिक शास्त्र पढ़ाकर

वो विष्णु शर्मा बनकर
पँचतन्त्र की कहानियाँ रचेंगे
वो लीला, नात, लडीशाह कहेंगे
और फिजा़ चहक उठेगी ।

बड़ी मुश्किल होगी तब
तुम अपने बच्चों को कैसे
समझा पाओगे फ़िदायीन बनने का अर्थ ?
इसलिए जल्दी करो,

निकालो, खींच कर निकालो सभी को
बच्चे, बूढ़े, मर्द सभी को जहन्नुम में भेजो
औरतें यहीं रहें तो बेहतर
सारी रिवायतें ,मुहब्बतें ,
संगीत, साहित्य
सबको देशनिकाला दो ।

हर अलग शै को चुन-चुन कर निकालो
ये दोस्ती निभाने का समय नहीं
संस्कृति ,सभ्यता ,सहिष्णुता
सबको जलावतन कर दो ।

फिर उन जलावतनों को भूल जाओ ।