भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई ये कहदे गुलशन गुलशन / जिगर मुरादाबादी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:17, 6 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जिगर मुरादाबादी }} कोई ये कहदे गुलशन गुलशन <br> लाख बलाएँ ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई ये कहदे गुलशन गुलशन

लाख बलाएँ एक नशेमन

कामिल रेहबर क़ातिल रेहज़न
दिल सा दोस्त न दिल सा दुशमन

फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन

उमरें बीतीं सदियाँ गुज़रीं
है वही अब तक अक़्ल का बचपन

इश्क़ है प्यारे खेल नहीं है
इश्क़ है कारे शीशा-ओ-आहन

खै़र मिज़ाज-ए- हुस्न की यारब
तेज़ बहुत है दिल की धड़कन

आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रोशन

आ कि न जाने तुझ बिन कल से
रूह है लाशा, जिस्म है मदफ़न

काँटों का भी हक़ है कुछ आखि़र
कौन छुड़ाए अपना दामन