भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुरा होता है बड़ा होना / अंकिता जैन

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:49, 1 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंकिता जैन |अनुवादक= }} {{KKCatKavita}} <poem> बु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुरा होता है बड़ा होना
कि फिर
छोटी सी चोट भी
माँ की प्यारी से ठीक नहीं होती
बड़े होते ही बाँधने लगते हैं गठरियाँ
द्वेष और पीड़ा की
ढोते हैं उन्हें, लाद चलते हैं पीनस पर
और तानकर सीना गुज़रते हैं
ज़ख्म देने वाले के सामने से
जैसे गुज़र रही हो सवारी किसी लाट की

कि फिर
हम बहलते नहीं किसी खिलौने से
और भूलते नहीं रोना मिनिट में
बल्कि
गाते हैं गीत रुदन के, दिन-महीनों-सालों तक
अंजुल भर व्यथा के लिए,
जिसने मारा है हथौड़ा, हमारे अभिमान से भरे मजूस पर

कि फिर
हम नहीं हो पाते अद्वैत
और पड़ जाते हैं फेर में द्वैत के,
तौलने लगते हैं अपने-पराए
नफ़े-नुकसान की तराजू से
और बांट देते हैं प्रेम टुकड़ों में
वैसे ही
जैसे बाँट दिए जाते हैं पत्ते किसी सट्टे को जीतने

कि फिर
हम रुक जाते हैं
बंद कर देते हैं सीखना, जानना, समझना
और शुरू कर चुके होते हैं
सिर्फ बघारना, मैं और मेरा

कि फिर
हम खो देते हैं
सारी संभावनाएँ एक बेहतर दुनिया बनाने की
क्योंकि हम बन चुके होते हैं
उसी दुनिया का हिस्सा
जिसके बेहतर होने की उम्मीद में मर चुके हैं
उसे बेहतर बनाने के सपने देखने वाले

इसलिए बुरा होता है बड़ा होना
अच्छा और सुंदर होता है तो सिर्फ
बच्चा बने रहना,
एक सुंदर मासूम बच्चा।