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कचकै करेजोॅ चितचोर / ब्रह्मदेव कुमार
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मुख से ना फूटै बोल, दिलोॅ के दरद
हमरे बाबू जी।
ढर-ढर आँखी ढरकै लोर, हमरे बाबू जी।
बचपन गमैलियै बाबू जी, गुड़वा खेलैलियै
गुड़िया सजैलियै।
गेलियै नै इस्कूलबा के ओर, हमरे बाबू जी।
छोटहिं उमरिया में, धरली डगर ससुररिया।
पढ़भोॅ-लिखबोॅ सपना भेलै मोर, हमरे बाबू जी।
पिया परदेशी बाबू जी, लिखी भेजै छै पतिया
मोर बतिया।
पाती देखी छाती में उठै हिलोर, हमरे बाबू जी।
केकरा सुनैबै बाबू जी, दिल के जे बतिया
हाय सुरतिया।
कचकै करेजोॅ चितचोर, हमरे बाबू जी।
आबेॅ हम्हूँ पढ़बै बाबू जी, लिखै लेॅ जे सीखबै
पतिया लिखबै।
जिनगी में होतै ज्ञान इंजोर, हमरे बाबू जी।